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________________ जैन मुबोध गुटका। (१२७) - साफ चतनजी ।।३।। इत्तर फुलेल लगावतां सुन चेतनजी.. पगड़ी बांधता टेड सुन चेतनजी, कुंकुम वरणों दे होती सुन चंतनजी, या बुढ़ापा लीधी घर चतनजी ॥४॥ अव चेतो तो चेतलो सुन चेतनजी, अभी हाथ में बात चेतनजी, चौथमल कहे धर्म करो सुन चेतनजी, भजलो श्री जगन्नाथ चेतनजी ॥५॥ १६७ कृपण का फोटू, (तर्ज पनजी मुंडे बोल) सुकृत करलरे, माया का लोभी, संग चलेगारे टेरा। ऐसो मनुष्य जमारो पाके, अब तो लावो लीजरे । कुटुम्म कवीलो धन दोलत में चित्त न दीजरे ॥ सुकृत ॥१॥ इस धन कारण देश प्रदेशां, धूप गीणी नहीं छायारे । करे नौकरी बहु नरनारी, जोड़े मायारे ॥ २ ॥ महंगो कपड़ो कभी न पहरे. दिन काढे कूकस खाइरे । सोनो रूपो नहीं पहरणदे, घर के मांहीरे ॥३॥तू जाणे धन लारे आसी, बांधे गाडी २रे। अंत समय हाथां की चींटी, लेगा कादीरे ।। ४ ।। नहीं खावे नहीं खरचे मूरख, दान देता कर धूजेरे । छाछ तो पाणी नहीं घाले, घर गायां दूजेरे ॥ ५ ॥ श्रयचित्यां को सुसले मुंजी, काल नकारा देगारे। कंठी डोरा मोहरां की थेन्यां, धरी रहेगारे ॥ ६॥ चौधमल कहे अखूट खजाना, धर्म का धन कमावारे । दया
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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