SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११८) जैन सुवोध गुटका। १८३ अध्यात्मिक-भांग (तर्ज मांग के गीत की) अजी भांग पियोतो पिया म्हारे महलां श्राजो काई कुम. तिरे महला मती जाओ, हो राज पियो भांगडली ॥१॥ लो जो लगे जिकी लोड़ी बनाई, फिर शील शिला पर बंटाई, हो राज पियो भांगडली ॥२॥ भक्ति की तो भांग बनाई, जिमें समता की शकर डलाई, हो राज पियो भांगडली ॥ ३ ॥ पर तीत पानी से साफ धुआई, ब्रह्मचर्य की विदाम नखाई, हो राज पियो भांगडली ॥४॥ करणी की तो काली मिरचा मांई, और प्रेम का पिस्ता सांई, हो राज पियो भांगडली ॥५॥ अध्यातम का इलायची दाना, यह भी मांग के बीच नखाना, हो राज पियो भांगडली ॥६॥ सर्व मसाला सामिल मिलाई. या तो ज्ञान की घाट मचाई, हो राज पियो भांगडली ॥ ७ ॥ सुमता सखि ने वेतनताई, दम दुधीया भांग बनाई, हो राज पियो भांगड़लीप्रथम प्यालो या झट भरलाई सत चित्त श्रानंद के ताई, होराज पिया भांगड़ली ॥ ६ ॥ ऐसी भांग पिया प्याला भर पियो, फिर मुक्ति की लहर लेवो हो राज पियो भांगडली ॥ १०॥ गुरु हीरालालजी महा सुखदाई, चौथमल ने भाव भांग गाई,होनाज पियो भांगड़ली॥११॥ . १८४ संसार त्याज्य. (तर्ज-मांड, भजो नित त्रिशला नंद कुमार ) . तजोरे जिया झूठो यो संसार, जरा हृदे ज्ञान विचार ।। टेर ॥ यूं स्वपना में राजलक्ष्मी, मिले नार परिवार । नैन खुलते ही विरला जावे, इण विध ज्ञान विचार ।तजो० ॥ ॥१॥ रत्न जड़ित का मालियारे, सुन्दर अबला नार। नाना
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy