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________________ (१००) जैन सुबोध गुटका। हदीश में हराम ॥ ह० ॥२॥ जिनाहकारी का करना बुरा है, नाहक क्यों होते बदनाम ॥ नाम० ॥३॥ दिल में तो दगावाजी भरी है, खाली करते हो भुक २ सलाम ॥ स०॥४॥ ऐश और दौलत कुन्वे के अन्दर, करते हो उन तमाम || तमाम० ॥ • ॥५॥गफलत को छोड़ो, दिल में तो सोचो, कितना है यहां पे सुकाम ॥ मु०॥६॥ श्रालिमुलगेव है नाम उस रव का, देखे :: सब तेरे वह काम । काम०॥७॥चौथमल कहे रहम रस्त्रो |जो, तुम चाहते हो जन्नत मुकाम मु०॥८॥ १५४ सट्टे का फल. (तर्ज-दादरा, सांवरो कन्हैयो बन्सी बजा गयो) " देखो सुजान सट्टे ने पागल बना दिया, साहुकारी धंधे को इसने छुड़ा दिया ॥टेर लगे न दिल प्रभु में टिके न पांव घर। दिनरात इसी घाट में ऐसे बिता दिया ॥ देखो० ॥१॥नीलाम कई पूछते साधु फकीर से। गांजा भंग मिष्ठान्न, भोजन को खिला दिया ॥२॥ नींद में श्रावे ख्वाव, तेजी मंदी का । होते हैं गुस्सा उसपे जो किसने जगा दिया ॥३॥ कहे ज्योतिष इस मास में बहुत लाभ है । सुनके छक्का मानने, सव धन लगा दिया ॥४॥श्रात ध्यान नित रहे, धर्म ध्यान का न लेश। यह चौथमल ने कई को त्यागन करा दिया ॥५॥ १५५ हित शिक्षा, (तर्ज-समकित की देखो वहार ) मत भूल मेरे प्यारे दुनियां की देखी यह बहार ॥ टेर। अंधा तू लटका महिना नो उरमें, रज वीर्य का लोनाते आहार ॥आहार०॥१॥ भोगी कष्ट पैदा हुआ तू खुशी हुओ परिवार
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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