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________________ २-द्रव्य गुण पर्याय २/१-सामान्य अधिकार ६०. यदि गुण के क्षेत्र से पर्याय का क्षेत्र छोटा हो तो क्या दोष ? पर्याय से बाहर स्थित गुण का भाग बिना परिवर्तन वाला रह जायेगा इसमें असम्भव दोष आता है, क्योंकि एक तो अखण्ड वस्तु में ऐसा द्वैत सम्भव नहीं और दूसरे गुण का स्वभाव ही परिणामी है। ६१. द्रव्य में गुण अधिक हैं या पर्याय ? गुण व पर्याय दोनों समान हैं, क्योंकि गुण हर समय अपनी किसी न किसी पर्याय के साथ ही रहता है। ६२. पर्याय का दूसरी प्रकार लक्षण करो? द्रव्य के विशेष को पर्याय कहते हैं । ६३. द्रव्य के विशेष से क्या तात्पर्य ? अंग, अंश, विशेष, अवयव, पर्याय ये सब एकार्थ वाची हैं। ६४. पर्याय या विशेष कितने प्रकार के होते हैं ? दो प्रकार के —सहभावी पर्याय व क्रम-भावी पर्याय । (इनके लक्षण पहिले किये जा चुके हैं। देखो १/३ परोक्ष प्रमाणाधिकार में प्रश्न नं० ६८ व ७२) अथवा तिर्यक् व ऊर्ध्व विशेष तिर्यक् व ऊर्ध्व विशेष किसको कहते हैं ? एक ही काल में भिन्न भिन्न क्षेत्र में स्थित अनेक पदार्थ तिर्यक् विशेष हैं ; जैसे गाय, घोड़ा, आदि पशु के तिर्यक् विशेष हैं। एक द्रव्य की आगे पीछे होने वाली भिन्न काल स्थित पर्याय उसके ऊर्ध्व विशेष हैं; जैसे बालक युवा वृद्ध एक ही व्यक्ति के ऊर्ध्व विशेष हैं। पर्याय के दोनों लक्षणों का समन्वय करो ? द्रव्य के विशेष को पर्याय कहते हैं। गुण द्रव्य के सहभावी विशेष हैं । गुण के भी विशेष कार्य को पर्याय कहते हैं, सो द्रव्य के क्रमभावी विशेष हैं । अतः दोनों लक्षण एक हैं, क्योंकि द्रव्य का विशेष कहो या कहो गुण का विकार एक ही बात है। ६७. क्रममावी पर्याय कितने प्रकार की होती है ? दो प्रकार की-परिणमन रूप व परिस्पन्दन रूप ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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