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________________ १-न्याय २६ ४-नय अधिकार २८. सद्भुत व असद्भूत व्यवहार नय में क्या अन्तर है ? अभेद द्रव्य में गुण गुणी भेद करके द्रव्य को गुण वाला आदि कहने की पद्धति सद्भूत व्यवहार नय है, और भिन्न द्रव्यों में कारण भावों द्वारा या अहंकार ममकार द्वारा स्वामित्व सम्बन्ध स्थापित करना अथवा उनमें कर्ता भोक्ता भाव उत्पन्न करना असद्भूत व्यवहार है। इस प्रकार अभेद में भेद करना सद्भूत और भेद में अभेद करना असद्भूत है। २६. असद्भूत व उपचरित असद्भूत में क्या अन्तर है ? एक क्षेत्रावगाही भिन्न पदार्थों में अभेद करना असद्भत या अनुपचरित असद्भूत है, जैसे शरीर व जीव में । तथा भिन्न क्षेत्रावगाही भिन्न पदार्थों में अभेद करना उपचरित असद्भत है, जैसे जीव व मकान में। ३०. सद्भुत व असद्भुत विशेषण का सार्थक्य क्या? गुण पर्याय वास्तव में द्रव्य के अपने अंश हैं इसलिये उनका सम्बन्ध सद्भूत है; पर भिन्न पदार्थ एक दूसरे के स्वभाव या अंश नहीं हैं इसलिये उनका सम्बन्ध असद्भुत है। व्यवहारपना दोनों में समान है क्योंकि अभेद में भेद करना भी व्यवहार है और भेद में अभेद करना भी । कारण कि दोनों ही उपचार हैं वास्तविक नहीं। ३१. वास्तविक न होते हुये भी व्यवहार का प्रयोग क्यों ? बिना विश्लेषण किये अभेद द्रव्य का परिचय देना असम्भव है तथा भिन्न द्रव्यों का वर्तन करने से ही लोक का सारा व्यवहार चलता है अतः शुरु शिष्य व्यवहार में तथा लौकिक व्यवहार में सर्वत्र इसी नय का आश्रय स्वाभाविक है। स्वभाव में स्थित ज्ञाता दृष्टा व्यक्ति को न बोलने की आवश्यकता और न लौकिक प्रयोजन की, इसलिये उसमें उसका आश्रय नहीं पाया जाता। ३२. निश्चय नय का लक्षण व कथन पद्धति बताओ। गुण गुणी में अभेद करके वस्तु जैसी है वैसी ही कहना निश्चय
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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