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________________ द-नय-प्रमाण ३५० ३- नय अधिकार मिट्टी द्वारा घड़ा बना' ऐसा कहने में मिट्टी साधन और घड़ा साध्य । इसी प्रकार यथा योग्य सर्वत्र लगा लेना । ११४. दोनों प्रकार के साधन साध्य भाव किस किस नय के विषय हैं ? निमित्त नैमित्तिक रूप साधन साध्य भाव पराश्रित होने के कारण असद्भूत व्यवहार नय का विषय है । और उपादान उपादेय रूप साधन साध्य भाव एक ही द्रव्य के क्रमवर्ती विशेष होने के कारण सद्भूत व्यवहार नय का विषय है । ११५. युगपत धर्मों में अविनाभाव किसको कहते हैं ? जहां एक धर्म रहता है वहां दूसरा धर्म भी अवश्य हो और जहां वह धर्म नहीं होता वहां दूसरा भी न रहे, इसे अविनाभाव कहते हैं । जैसे - जहां जहां धुआं है वहां वहां अग्नि अवश्य होती है और जहां जहां अग्नि नहीं होती वहां वहां धुआं भी नहीं होता। ११६. वस्तु स्वरूप में निश्चय व्यवहार साध्य साधन भाव दिखाओ । यद्यपि पदार्थ के स्वरूप में सामान्य विशेष को कोई सत्ताभूत भेद नहीं है, फिर भी भेद किये बिना कहना असम्भव है । इसलिये वक्ता व श्रोता दोनों को सर्वप्रथम उसका स्वरूप समझने या समझाने के लिये भेद ग्राहक व्यवहार का आश्रय लेना पड़ता ही है, क्योंकि ऐसा करने से ही उसका अभेद निश्चय स्वरूप समझ में आता है । अतः तहां व्यवहार द्वारा कथन करना साधन है और निश्चय स्वरूप का समझना साध्य है । यहां सद्भूत व्यवहार वाला साधन साध्य भाव समझना । ११७. रत्नत्रय में निश्चय व्यवहार साध्य साधन भाव दिखाओ । यद्यपि रत्नत्रय का यथार्थ स्वरूप निर्विकल्प समाधि में सम्यादर्शन सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित रूप विकल्प या भेद नहीं है, फिर भी भेद किये बिना उस का समझना समझाना तथा साक्षात ग्रहण करना असम्भव है । इसलिये साधक को अपनी
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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