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________________ ३-नय अधिकार १८. उपरोक्त सर्व विषयों में कौन-कौन सी नय लागू होती हैं ? . ..मूल नय दो ही हैं-निश्चय व व्यवहार। निश्चय अभेद रूप सामान्य को दर्शाता है और व्यवहार भेद रूप विशेष को अतः इन दोनों को लागू कर देने पर समस्त नय यथायोग्य रूप से स्वतः लागू हो जाती हैं, क्योंकि सामान्य विशेष का समन्वय हो जाने पर अन्य कुछ शेष नहीं रह जाता है। ६६. वस्तुस्वरूप में निश्चय व व्यवहारनय लागू करके बताओ। .. 'पदार्थ या वस्तु अनेक गुणों व पर्यायों वाली है', ऐसा भेद रूप कथन करना व्यवहार नय है, और वही वस्तु उन गुण पर्यायों के साथ तन्मय एक अखण्ड रसस्वरूप है' ऐसा अभेद कथन करना निश्चय नय है। १०० रत्नत्रय में निश्चय व व्यवहार लागू करो। 'रत्नत्रय सम्दग्दर्शन सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्न इस प्रकार तीन रूप है' ऐसा भेद कथन करना व्यवहार है, और वही रत्नत्रय उन तीनों को एक रसरूप अखण्ड आत्म समाधि है' ऐसा अभेद कथन करना निश्चय है। १०१. सम्यग्दर्शन में निश्चय व्यवहार लागू करो। 'विकल्प रूप से सातों तत्वों की श्रद्धा करना सम्यग्दर्शन है' ऐसा पराश्रित व भेद कथन करना व्यवहार है, और 'वही सम्यग्दर्शन उन्हीं सातों तत्वों में अनुस्यूत एक अखण्ड ज्ञायक भाव का दर्शन करना है' ऐसा स्वाश्रित व अभेद कथन करना निश्चय है। १०२. सम्यग्ज्ञान में निश्चय ग्यवहार लागू करो। 'आगमज्ञान अथवा आगम प्रतिपादित तत्वों का पृथक पृथक वाच्य वाचक ज्ञान सम्यग्ज्ञान है' ऐसा भेद कथन व्यवहार है । 'अन्य तत्वों व पदार्थो से विलक्षण एक अखण्ड निजस्वरूप का स्वसंवेद सम्यग्ज्ञान है' ऐसा स्वाश्रित अभेद कथन निश्चय है।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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