SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -नय प्रमाण ३४० ३-नय अधिकार ..उसके वाचक शब्द में होता है। तहाँ ऋजुसूत्र नय तो भिन्न लिंग कारक आदि वाले अनेक शब्दों का भी एक ही अर्थ ग्रहण कर लेता है, और उनके वाच्यार्थ में भेद का विकल्प नहीं करता। परन्तु शब्दनय केवल समान लिंग कारक आदि वाले शब्दों की ही एकार्थता स्वीकार करता है, भिन्न लिंग आदि वालों की नहीं। इसलिये शब्दनय ऋजुसूत्र से अल्प विषय वाला है। समभिरूढ़ नय शब्द नय के विषयभूत समान लिंग कारक आदि वाले एकार्थवाची शब्दों में भेद करके उनका भिन्न भिन्न अर्थ स्वीकार करता है, इसलिये इसका विषय शब्दनय से अल्प है। प्रत्येक शब्द को भिन्नार्थ वाची मानकर भी समभिरूढ नय पदार्थ की सर्व अवस्थाओं में उसे एक ही नाम देता है, परन्तु एवंभूत इतना अभेद भी पसन्द नहीं करता। वह पदार्थ की भिन्न समयवर्ती पृथक-पृथक भिन्न क्रियाओं को आश्रय करके, उसे प्रत्येक अवस्था में भिन्न नाम प्रदान करता है। क्रिया या अवस्था बदल जाने पर यहाँ उसका नाम भी बदल जाता है। इसलिये समभिरूढ़ की अपेक्षा भी एवंभूत का विषय अत्यल्प है, जिसके पश्चात शब्द में और सूक्ष्मता लाना संभव नहीं। ६३. शुद्ध द्रव्याथिक नय किसको कहते हैं ? अभेदरूप से सामान्य का कथन करने वाला संग्रह नय शुद्ध द्रव्याथिक है; अथवा पर्यायों को न देखकर त्रिकालो शुद्ध तत्व का विवेचन करना इसका काम है। ६४. अशुद्ध द्रव्याथिक नय किसको कहते हैं ? भेद रूप से सामान्य का कथन करने वाला व्यवहार नय अशुद्ध .... द्रव्याथिक है; अथवा स्थूल द्रव्य पर्यायों का आश्रय करके उसको द्रव्य रूप से विवेचन करना इसका काम है। .. ६५. शुद्ध पर्यायाथिक नय किसको कहते हैं ? .: शुद्ध अर्थ पर्याय का कथन करने वाला सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय शुद्ध
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy