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________________ ७-स्याद्वाद ३१० ४-सप्तभंगी अधिकार क्तव्यता एक साथ पाये जाते हैं। १६. इस प्रकार परस्पर के संयोग से तो अन्य भंग भी बन सकते हैं ? नहीं, क्योंकि सात भंग कह चुकने पर आगे प्रश्न शान्त हो जाते हैं और संशय निवृत्त हो जाता है। सब प्रकार के संशयों का स्पष्टीकरण इन सात भंगों से हो जाता है और सकल विरोध विराम पाता है। १७ सत् असत् धर्मों में ही सप्त भंगी लागू होती है या अन्यत्र भी ? सत् असत् इन दो विरोधी धर्मों की भांति सर्व ही विरोधी युगल धर्मों में नियोजित होती है, तथा विशदता के लिये नियोजित करनी चाहिये । इस प्रकार पदार्थ में जितने भी विरोधी युगल धर्म हैं, उतनी ही सप्तभंगिये समझनी चाहिये । १८. तत् अतत् धर्म युगल में सप्तभंगी दर्शाओ। पदार्थ में द्रव्य के सत्ता द्रव्य की अपेक्षा तत् है और गुण पर्यायों की अपेक्षा अतत् । दोनों की क्रम से नियोजना करने पर वह तत् होते हुए भी अतत् और अतत् होते हुए भी तत् है । दोनों धर्मों की युगपत अपेक्षा होने पर यद्यपि वह अवक्तव्य है, पर सर्वथा अवक्तव्य नहीं है । युगपत अखण्ड रूप से अवक्तव्य होते हुए भी द्रव्य रूप से तत् है तथा गुण पर्यायों रूप से अतत् है। इस प्रकार क्रम से व युगपत सभी विकल्प विचारने पर वह तत् अतत् अवक्तव्य तीनों रूप है। १९. एक अनेक धर्म युगल में सप्त भंगी दर्शाओं ? तिर्यक व ऊर्वता सामान्य की अपेक्षा वह सर्वगुणों व पर्यायों में अनुगत होने से एक है तथा उन्हीं के विशेषों की अपेक्षा वह अनेक है । इस प्रकार एक होते हुए भी अनेक तथा अनेक होते हुए भी एक है। सामान्य विशेष दोनों को युगपत कहना अशक्य होने से अवक्तव्य है; पर उन्हें ही क्रम से कहें तो अवक्तव्य होते हुए भी एक अथवा अनेक है। इस प्रकार एक अनेक व अवक्तव्य तीनों धर्मों युक्त है।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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