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________________ ७-स्याद्वाद ३०२ १-वस्तु स्वरूपाधिकार ५६. चारों अभाव किस-किस द्रव्य में लागू होते हैं ? केवल पुद्गल में। ६०. अत्यन्ताभाव को न माने तो क्या हानि ? सब द्रव्य मिलकर एकमेक हो जाये। ६१. अन्योन्याभाव न माने तो क्या हानि ? पुद्गल स्कन्धों में भिन्नता की प्रतीति ही म हो, सब एक स्कन्ध बन बैठे। ६२. प्रागभाव न माने तो क्या हानि ? द्रव्य की पर्याय अनादि बन जाये। ६३. प्रध्वंसाभाव न मानें तो क्या हानि ? द्रव्य की पर्यायों का कभी नाश न हो। ६४. तदभाव न मानें तो क्या हानि ? द्रव्य में अनेक गुणों की सिद्धि न हो अथवा सब गुण मिल कर एक हो जायें। ६५. चारों अभावों को समझने का प्रयोजन क्या ? द्रव्य, गुण व पर्याय का अपना-अपना पृथक-पृथक अस्तित्व व स्वरूप समझना। ६६. जगत की हृष्ट चित्रता विचित्रता में कौन सा अभाव कारण हैं ? अन्योन्याभाव। ६७. द्रव्य, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, स्वभाव इन पांचों अभावों कों कारणपना दर्शाओ? प्रागभाव में उत्पाद कारण है, प्रध्वंसाभाव में व्यय, अन्यन्ताभाव व तदभाव में ध्रौव्य, अन्योन्या भाव में उत्पाद ब्यय । व्यतिरेकी विशेषों में कौनसा अभाव ? अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभाव । ६६. सहभावी विशेषों में कौनसा अभाव ? तदभाव । ६८. व्या
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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