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________________ ७-स्याद्वाद २६४ १-वस्तु स्वरूपाधिकार अनुगत हुआ ही देखा जाता है, उनसे पृथक नहीं। (ख) जो यह गुणों का समूह रूप एक सामान्य द्रव्य है, वह अपने गुणों रूप सहभावी विशेषों में अनुगत हुआ ही देखा जाता है, उनसे पृथक नहीं। जैसे-जीव द्रव्य ज्ञानादि गुणों में अनुगत ही सत् हैं उनसे पृथक नहीं। (ग) जो यह ऊर्ध्वता सामान्य रूप एक द्रव्य है वह अपनी पर्यायों रूप क्रमभावी विशेषों में अनुगत हुआ ही देखा जाता है, उनसे पृथक नहीं। जैसे कि गो रस नाम का द्रव्य, दूध, दही, छाछ, घी आदि में अनुगत ही है, इनसे पृथक नहीं। १७. सामान्य व विशेष में किसका प्रत्यक्ष होता है ? प्रत्यक्ष केवल विशेष का हुआ करता है, सामान्य का नहीं। जैसे-प्रत्यक्ष मनुष्यों का ही होता है मनुष्यत्व का नहीं; दूध दही आदि का ही होता है । गोरस का नहीं। १८. तब सामान्य को कैसे जाना जाये ? अनुमान से जाना जाता है। विशेष कार्यरूप है और सामान्म कारण रूप । 'कारण हो तो कार्य हो अथवा न भी हो, पर कार्य से तो उसका कारण अवश्य होना चाहिये' ऐसे तर्क पर से उसका अनुमान होता है। जैसे - यदि मनुष्यत्व रूप सामान्य जाति न होती तो मनुष्य किसको कहते ? अथवा यदि गोरस न होता तो दूध दही आदि कहां से आते । १६. सामान्य का प्रयक्ष क्यों नहीं होता? क्योंकि विशेषों से पृथक उसकी कोई स्वतन्त्र सत्ता नहीं है। जैसे—योद्धाओं हाथियों व घोड़ों आदि से पृथक सेना नामका कोई सत्ताभूत पदार्थ नहीं है। योद्धाओं आदि को देखकर ही 'यह सेना है' ऐसा सामान्य जाना जाता है और व्यवहार में आता है। उनसे पृथक सेना नाम के पदार्थ की सत्ता नहीं जिसका कि प्रत्यक्ष किया जा सके।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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