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________________ ४-भाव व मार्गणा २१६ १- भावाधिकार जीव का स्वभाव मात्र हो, उसको पारिणामिक भाव कहते हैं । (जैसे स्वर्णत्व न खोटा होता न खरा वह तो स्वर्ण स्वभाव है जो खोटे में भी वैसा ही और खरे में भी वैसा है ) १२. जीव का पारिणामिक भाव कैसा होता है ? जिस प्रकार कादो मिले जल में भी विचार करने पर जल वैसा ही जानने में आता है जैसा कि शद्ध, कादो का भाग उससे पृथक प्रतीत होता है; उसी प्रकार कर्माच्छादित जीव में भी विचार करने पर चैतन्य वैसा ही जान में आता है जैसा कि सिद्ध भगवान में, कर्म का भाग उससे पृथक प्रतीत होता है। त्रिकाली यह शुद्ध भाव ही पारिणामिक है। (१३) औपशमिक भाव के कितने भेद हैं ? । दो हैं--- एक सम्यक्त्व भाव, दूसरा चारित्र भाव । (१४) क्षायिक भाव के कितने भेद हैं ? नौ हैं--क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, क्षायिक दर्शन, क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षा० भोग, क्षा० उपभोग, क्षा० वीर्य । (१५) ज्ञायोपशामिक भाव के कितने भेद हैं ? अठारह हैं-सम्यक्त्व, चारित्र, चक्ष दर्शन, अचक्ष दशन, अवधि दर्शन, देश संयम, मतिज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान कुमति ज्ञान, कुथत ज्ञान, विभंग ज्ञान, दान, लाश, भोग, उपभोग वीर्य । (१६) औदयिक भाव कितने हैं ? इक्कीस हैं-गति ४, कषाय ४, लिंग ३, मिथ्यादर्शन १, अज्ञान (मिथ्या ज्ञान या ज्ञानाभाव) १, असंयम १, असिद्धत्व १, लेश्या ६ (पीत, पद्म, शक्ल, कृष्ण, नील, कापोत)। (१७) पारिणामिक भाव कितने हैं ? तीन हैं--जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व । १८. पारिणामिक भाव इतने ही हैं या और भी ? जीव द्रव्य की अपेक्षा तो इतने ही हैं, क्योंकि जीवत्व या चेतनत्व तो सामान्य भाव है और भव्यत्व और अभव्यत्व इसके विशेष । बाकी गणों की अपेक्षा प्रत्येक गुण का स्वभाव उस उस का परिणामी भाव कहा जा सकता है, जैसे ज्ञान का ज्ञानत्व ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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