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________________ ३- कर्म सिद्धान्त २१५ से उत्पन्न योग को अशुभ योग कहते हैं । (४६) जिस समय जीव के शुभ प्रकृतियों का आस्रव होता है या नहीं ? होता है । ? (४७) यदि होता है तो शुभ योग पापात्रव का भी कारण ठहरा नहीं ठहरा। क्योंकि जिस समय जीव में शुभ योग होता है, उस समय पुण्य प्रकृतियों में स्थिति अनुभाग अधिक पड़ता है, और पाप प्रकृतियों में कम पड़ता है । और इस ही प्रकार जब अशुभ योग होता है तब पाप प्रकृतियों में स्थिति अनुभाग अधिक पड़ता है और पुण्य प्रकृतियों में कम । दशाध्याय तत्वार्थ सूत्र के छटे अध्याय में ज्ञानावरणादि प्रकृतियों के आस्रव के कारण जो प्रदोष निन्हवादिक कहे गए हैं, उनका अभिप्राय है कि उन उन भावों से उन उन प्रकृतियों में स्थिति अनुभाग अधिक अधिक पड़ते हैं । अन्य जो ज्ञानावरणादिक पाप प्रकृतियों का आस्रव दशवे गुणस्थान तक सिद्धान्त शास्त्र में कहा है उससे विरोध आवेगा अथवा वहां शुभ योग के अभाव का प्रसंग आवेगा । क्योंकि शुभ योग दशवे गुणस्थान से पहले पहले ही होता है । ३- बन्धाकारण अधिकार योग होता है उस समय पाप प्रश्नावली १. लक्षण करो - प्रकृति आदि बन्ध, सम्यक्प्रकृति, जीव पुद्गल क्षेत्र व भवविपाकी प्रकृति, स्पर्ध, अविभागप्रतिच्छेद, उत्कर्षण, क्षयोपशम । २. भेद करो –—बन्ध, मोहनीय कर्म, संहनन, सर्वघाती प्रकृति, क्षेत्र विपाकी प्रकृति, आस्रव । ३. अन्तर दर्शाओ - शरीर - निर्माण, आयु-गति, सुभग-आदेय, उदय - उदीरणा, अन्तरकरण व सदवस्था रूप उपशम, क्षयउदयाभावी क्षय, प्रत्येक साधारण ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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