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________________ ३-कर्म सिद्धान्त २१३ ३-बन्धकारण अधिकार (३३) अप्रत्याख्यानावरण कषायोदय जनित अविरति से किन किन प्रकृतियों का बन्ध होता है ? दश प्रकृतियों का अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, मनुष्यायु, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, वज्रर्षभनाराच संहनन । (३४) प्रत्याल्यानावरण कषायोदय जनित अविरति से किन किन प्रकृतियों का बन्ध होता है ? चार प्रकृतियों का-प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ । (३५) प्रमाद से कितनी प्रकृतियों का बन्ध होता है ? छ: का-अस्थिर, अशुभ, असाता, अयश:कीर्ति, अरति, शोक । (३६) कषाय (संज्वलन) के उदय से कितनो प्रकृतियों का बन्ध होता है ? अट्ठावन का—देवायु, निद्रा, प्रचला, तीर्थकर, निर्माण, प्रशस्त विहायोगति, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्माण शरीर, आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग, समचतुरस्र संस्थान, वैक्रियक शरीर, वैक्रियक अंगोपांग, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, खस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, सुभग, शुभ, सुस्वर, आदेय, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय, पुरुषधेद, संज्वलन क्रोध मान माया लोभ, पांचों ज्ञानावरण, चारों दर्शनाबरण, पांचों अन्तराष, यशस्कीति, उच्च गोत्र इन ५८ प्रकृतियों का बन्ध करता है। (३७) योग के निमित्त से किस प्रकृतिका बन्ध होता है ? । एक साता वेदनीय का बन्ध होता है। (३८) कर्म प्रकृति सब १४८ हैं और कारण केवल १२० के लिखे सो २८ प्रकृतियों का क्या हुआ? स्पादि २० की जगह चार का ही ग्रहण किया गया है । इस
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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