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________________ १ - बन्धाधिकार १३- कर्म सिद्धान्त १८८ ( ८e) हुण्डक संस्थान किसे कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से शरीर के अंगोपांग किसी खास शकल के न हों । (६०) संहनन नाम कर्म किसे कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से हाड़ों का बन्धन विशेष हो, उसे संहनन नामकर्म कहते हैं । (१) वज्रर्षभनाराच संहनन किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से वज्ज्र के हाड़ हों, वज्र की ही कीली हों तथा वेष्टन ( चमड़ा ) भी वज्र के हों । ६२. वज्र के हाड़ आदि कैसे ? अत्यंत कठोर, सुदृढ़ व मजबूत हड्डी, चमड़ा आदि वज्र का कहा जाता है । (१३) वज्रनाराच संहनन किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से वज्र के हाड़ व वज्र की कीली हों परन्तु वेष्टन वज्र का न हो । (६४) नाराच संहनन किसे कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से वेष्टन और कीली सहित हाड़ हों (पर कोई भी वस्तु वज्र की न हो) । (६५) अर्द्ध नाराच संहनन किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से हाड़ों की संधि अर्द्धकीलित हो । (६६) कीलक संहनन किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से (बिना कीलों के) हाड़ परस्पर कीलित हों । (७) असंप्राप्त सुपाटिका संहनन किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से जुदे जुदे हाड़ नसों से बन्धे हों, परस्पर कीले हुए न हों । ८. संहनन कौन से शरीर में होता है ? केवल औदारिक शरीर में ही संहनन होता है, क्योंकि उसमें
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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