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________________ ३-कर्म सिद्धान्त १८५ १-बन्धाधिकार ६६. अनन्तानुबन्धी का उत्कृष्ट वासना काल कितना ? अनन्तानुबन्धी वासना अनन्त काल रहती है अर्थात भव भवान्तर तक साथ जाती है। अप्रत्याख्यान का उत्कृष्ट काल छ: महीने है । प्रत्याख्यान का १५ दिन और संज्वलन का अन्तर्मुहूर्त मात्र है। ७०. नोकषाय कौन से चारित्र को घातती है ? यथाख्यात चारित्र को। (७१) आयु कर्म किसे कहते हैं ? जो कर्म आत्मा को नारक तिर्यञ्च मनुष्य देव के शरीर में रोक रखे उसको आयु कर्म कहते हैं । अर्थात आयु कर्म आत्मा के अवगाह गुण को घातता है । (७२) आयु कर्म के कितने भेद हैं ? चार-नरकायु, तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु व देवायु । (७३) नाम कर्म किसको कहते हैं ? जो जीव को गत्यादिक नाना रूप परिणमावै अथवा शरीरादिक बनावे । भावार्थ-नामकर्म आत्मा के सूक्ष्मत्व गुण को घातता है। (७४) नाम कर्म के कितने भेद हैं ? तिरानवे-चार गति (नरक, तिर्यंच, मनुष्य व देव); पांच जाति (एकेन्द्रियादि पंचेन्द्रिय पर्यन्त); पांच शरीर (औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस, कार्माण); तीन अंगोपांग (औदारिक वैक्रियक आहारक); एक निर्माण कर्म, पांच बन्धन कर्म (पांचों शरीरों के पांच); पांच संघात कर्म (पांचों शरीरों के); छः संस्थान समचतुरस्र, न्यग्रोध परिमण्डल, स्वाति, कुब्जक, वामन व हुंडक); छः संहनन (वज्र ऋषभ नाराच, वज्र नाराच नाराच, अर्द्ध नाराच, कीलक, असंप्राप्त सपाटिका); पांच वर्ण (कृष्ण नील रक्त पीत श्वेत); दो गन्ध (सुगन्ध दुर्गन्ध) पांच रस (खट्टा मीठा कडुआ कसायला चरपरा); आठ स्पर्श (कठोर, कोमल, हलका, भारी, ठण्डा, गर्म, चिकना, रूखा); चार
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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