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________________ २-द्रव्य गुण पर्याय १५६ ५-पर्यायाधिकार ४५. विभाव अर्थ पर्याय तो छप्रस्थ ज्ञान गम्य होती है ? हां अन्तर्मुहुर्त स्थायी होने से क्रोधादि विभाव अर्थ पर्याय स्थूल व छद्मस्थ ज्ञान गोचर होती हैं, और इस लिये उन्हें भी कदाचित व्यञ्जन पर्याय कहा जा सकता है, पर रूढ़ न होने से उसके लिये उस शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता। ४६. एक समय स्थायी पर्याय कैसी होती है ? वह केवल ज्ञान गम्य ही है तथा अत्यन्त सूक्ष्म । षट् गुण हानि वृद्धि ही उसका रूप है। ४७. षट्गुण हानि वद्धि किसे कहते हैं ? अगुरुल घुत्व गुण के कारण गुणों में जो निरन्तर परिणमन होता रहता है वही षट् गुण हानि वृद्धि का वाच्य है । गुणों के अविभाग प्रतिच्छेदों में अन्दर ही अन्दर बराबर घटोतरी बढ़ोतरी द्वारा सूक्ष्म तरतमता आते रहना ही उसका रूप है । ४८. यह सूक्ष्म अर्थ पर्याय स्वभाविक होती है या विभाविक ? सूक्ष्म अर्थ पर्याय शुद्ध द्रव्यों में ही होती है अशुद्ध में नहीं अतः वह स्वभाव अर्थ पर्याय है। ४६. विभाव अर्थ पर्याय भी तो प्रति क्षण बदलती ही होगी ? बदलती अवश्य है, पर वह रूढ़ नहीं है । (४. सादि सन्तादि पर्याय) ५०. आदि अन्त की अपेक्षा पर्याय के कितने भेद हैं ? चार भेद हैं-सादि सान्त, आदि अनन्त, अनादि सान्त, अनादि अनन्त । ५१. सादि सान्त पर्याय किसे कहते हैं ? जिस पर्याय का आदि भी हो और अन्त भी, जैसे हर्ष विषाद । ५२ सभी पर्यायों का आदि अन्त होता है ? सूक्ष्म रूप से सभी अर्थ पर्याय सादि सान्त है, पर स्थूल रूप से कुछ सादि सान्त व सादि अनन्त आदि भी है। व्यञ्जन पर्याय क्या नियम से सादि सान्त नहीं होती ? नहीं; अशुद्ध द्रव्यों में वे नियम से सादि सान्त होती हैं और शुद्ध द्रव्यों में सादि सान्त व सादि अनन्त भी।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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