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________________ ४ - जीव गुणाधिकार २- द्रव्य गुण पर्याय १४८ २६३. वैभाविकी शक्ति किसे कहते हैं ? जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य में दूसरे द्रव्य का सम्बन्ध होने पर विभाव परिणमन हो ( अर्थात अशुद्ध अवस्था को प्राप्त हो जाये ।) २६४. वैभाविकी गुण क्यों न कहा ? क्यों कि द्रव्य सदा अशुद्ध परिणमन करे ऐसा नहीं होता । दूसरे भाविक शक्ति की कोई पृथक व्यक्ति उपलब्ध नहीं होती । द्रव्य में विभाव परिणमन की सामर्थ्य की द्योतक मात्र है । २६५ विभाव से क्या समझे ? अनेक द्रव्यों के परस्पर बन्ध को प्राप्त हो जाने से उसमें जो अशुद्धता आ जाती है, उसे विभाव कहते हैं-जैसे जीव में शरीर व रागद्वेषादि और पुद्गल में स्कन्ध । २६६. क्रियावती व भाववती शक्ति में क्या अन्तर है ? क्रियावती शक्ति का व्यापार प्रदेशत्व गुण में है या द्रव्य के प्रदेशों में होता है और भाववती शक्ति का व्यापार अन्य सब गुणों में । २६७. भाववती शक्ति व वैभाविकी शक्ति में क्या अन्तर है ? भाववती शक्ति का शुद्ध व अशुद्ध सभी द्रव्यों के गुणों में सामान्य रूप से परिणमन कराना है और वैभाविकी शक्ति का व्यापार अन्य द्रव्य का संयोग कराकर उसमें अशुद्धता कराना है । २६८. ये तीनों "शक्तियें" किन-किन द्रथ्यों में पाई जाती हैं ? भाव शक्ति सामान्य है क्योंकि सभी द्रव्यों में सामान्य रूप से पाई जाती है, अर्थात सभी द्रव्य परिणमन करने की सामर्थ्य से युक्त हैं । परन्तु क्रियावती व वैभाविकी शक्ति विशेष हैं । ये जीव व पुद्गल में ही पाई जाती हैं, क्योंकि वे दोनों गमन करने तथा परस्पर में बंध कर अशुद्ध होने में समर्थ हैं ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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