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________________ ४- जीव गुणाधिकार विचारेगा, ऐसे विकाली मनोगत विषय को यह ज्ञान ग्रहण करने में समर्थ है। २- द्रव्य गुण पर्याय १२७ १२१. मनः पर्यय ज्ञान कितने प्रकार का होता है ? दो प्रकार का होता है - ऋजुमति व विपुलमति । १२२. ऋजुमति मनः पर्यय ज्ञान किसे कहते हैं ? मन में स्थित सरल या सीधे साधे पदार्थ को जानना ऋजुमति है । १२३. विपुलमति मनः पर्यय ज्ञान किसे कहते हैं ? मन में स्थित बक्र या टेढ़े पदार्थ का जानना विपुलमति है । १२४. सरल या वक्र विषय क्या ? मायाचारी युक्त मन का विचार वक्रविषय है और सरल मन का विचार सरल विषय है । १२५. मनः पर्यय ज्ञान कैसे उत्पन्न होता है ? सम्यक्त्व व तप विशेष के प्रभाव से ही होता है । १२६. मनः पर्यय ज्ञान किनको होता है ? वीतरागी साधुओं को ही होता है । अन्य साधारण मनुष्यों का या तिर्यच नारकी व देवों को नहीं होता है । तीर्थकरों व गणधरों को दीक्षा धारण करते समय ही प्रगट हो जाता है । १२७. ऋजुमति व विपुलमति में क्या अन्तर है ? * ( क ) ऋजुमति का विषय सरल व स्थूल है तथा विपुलमति का सरल स्थूल के साथ साथ वक्र व सूक्ष्म भी । (ख) ऋजुर्मात प्रतिपाती है अर्थात उत्पन्न होने के पश्चात छूट भी जाता है, पर विपुलमति अप्रतिपाती है, बिना केवल ज्ञान हुए नहीं छूटता | ( ग ) ऋजुमति अन्य मुनियों को भी हो सकता है पर विपुलमति चरम शरीरी मुनियों को ही होता है । (घ) इसलिये ऋजुमति की अपेक्षा विपुलमति अधिक विशुद्ध है ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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