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________________ २-अव्य गुण पर्याय ११६ ४-गुणाधिकार रमे हुए नाक में गन्ध का ग्रहण)। (५७) व्यञ्जनावग्रह भी अर्थावग्रह की तरह सब इन्द्रियों और मन से होता है या कैसे? व्यञ्जनावग्रह चक्षु व मन के अतिरिक्त सभी इन्द्रियों से होता है। (५८) व्यक्त व अव्यक्त पदार्थों के कितने भेद हैं ? हर एक के १२ भेद है-बहु-एक, बहुविध-एकविध, क्षिप्र अक्षिप्र, निःसृत-अनिःसृत, उक्त-अनुक्त, ध्रुव-अध्रुव । ५६. अवाय होने वाले को कितने ज्ञान हैं ? तीन हैं—अवग्रह, ईहा व अवाय । देवदत्त को देखते ही पहिचान गया, बताओ मुझे कितने ज्ञान छह ज्ञान हुए-अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा, स्मृति व प्रत्यभिज्ञान । कुछ काल पूर्व उसे देखा था तब अवग्रह आदि चार ज्ञान हुए थे और अब उसे देखा है तब छहों हुए हैं। ६१. उपरोक्त सर्व विकल्पों को मिलाने पर मति ज्ञान के कुल कितने भेद हुए ? अर्थावग्रह योग्य १२ पदार्थों के छहों इन्द्रियों द्वारा अवग्रह आदि चारों होते हैं । अतः ६४ १२४४=२८८ हुए। व्यञ्जन या अव्यक्त १२ पदार्थ का नेव व मन रहित चार इन्द्रियों द्वारा केवल अवग्रह होता है । अत: ४४१२४१ =४८ । कुल मिलकर ३२६ भेद हुए। (ये तो प्रत्यक्ष मति ज्ञान के भेद हैं। इनमें ४८ की स्मृति आदि सम्भव नहीं। २८८ के स्मृति आदि तीनों परोक्ष भेद भी हो सकते हैं । अत; परोक्ष भेद कुल ४८+२८८४३= ६१२ हुए। कुल मिलकर३६६+६१२%= १२४८ हुए)
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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