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________________ २- द्रव्य गुण पर्याय ६६ ३ - गुणाधिकार हो जाता । प्रतिक्षण नये से पुराना होता हुआ यह जर्जरित हुआ जा रहा है । ५३. द्रव्यत्व गुण को जानने से क्या प्रयोजन ? जगत में निराशा के स्थान पर सौन्दर्य के दर्शन करना । (ख) अपनी वर्तमान अज्ञान दशा से निराश न होना, क्योंकि यह भी बदल कर एक दिन सम्यक्त्व पूर्वक तेरा परमार्थ कल्याण बन बैठेगा । ( ५. प्रमेयत्व गुण ) ५४. प्रमेयत्व गुण किसे कहते हैं ? जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य किसी न किसी के ज्ञान में विलय हो, उसे प्रमेयत्व गुण कहते हैं । ५५. 'किसी न किसी के ज्ञान में' इससे क्या समझे ? परोक्ष का नहीं तो प्रत्यक्ष का अथवा छद्मस्थ के ज्ञान का नहीं तो सर्वज्ञ के ज्ञान का विषय अवश्य होगा | ५६. 'प्रमेयत्व' शब्द का क्या अर्थ ? प्रमाण अर्थात सच्चे ज्ञान में आने की योग्यता ही प्रमेयत्व है ५७. यह बात अत्यन्त गुप्त रखना, देखना कोई जानने न पावे ? ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि अपने प्रमेयत्व गुण के कारण वह बात अवश्य किसी न किसी के द्वारा जानी जा रही है । ५८. अलोकाकाश में तो कोई नहीं, बताओ उसे कौन जाने ? अपने प्रमेयत्व गुण के कारण वह सर्वज्ञ के ज्ञान का विषय हो रहा है। ५६. जगत में कितने पदार्थ जाने जाने योग्य हैं ? सत्ताभूत सभी पदार्थ जाने जाने योग्य हैं, क्योंकि सभी प्रमेयत्व गुण युक्त हैं । ६०. द्रव्य जाना जाये पर पर्याय नहीं ? नहीं, द्रव्य गुण पर्याय तीनों ही जाने जाते हैं, क्योंकि तीनों पृथक पृथक नहीं अखण्ड हैं । द्रव्य का प्रमेयत्व गुण ही उसके अन्य गुणों व पर्याय को जनवाने में कारण है ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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