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________________ ९३ २-द्रव्य गुण पर्याय ३-गुणाधिकार (ग) प्रत्येक द्रव्य अपने गुण पर्यायों को वास देता है । ३४. वस्तुत्व गुण के उपरोक्त लक्षणों का समन्वय करो। अर्थ क्रिया या प्रयोजनभूत कार्य द्रव्य में तभी सम्भव है जबकि उसमें अपने गुण पर्याय बसते हों तथा सदा अपने स्वरूप की रक्षा करता हुआ अन्य रूप न हो जाता हो । यदि द्रव्य स्वोचित कार्य को छोड़कर अन्योचित कार्य करने लगे तो घट भी कल को पट का कार्य करने लगेगा और इस प्रकार घट भी पट बन जायेगा और पट मठ बन बैठेगा। द्रव्यों के स्वभाव की कोई व्यवस्था न बन सकेगी। अतः प्रयोजन भूत कार्य से ही स्व चतुष्टय में स्थिति तथा गुण पर्यायों का वास जाना जाता है। ३५ कूड़ा कचरा निकम्मा ? उसका भी प्रयोजनभूत कार्य है वदबू देना तथा मच्छर पैदा करना। ३६. वस्तुत्व गुण जानने का क्या प्रयोजन ? मेरा प्रयोजनभूत कार्य जानना देखना है, अतः इसके अति रिक्त अन्य कुछ करने का विकल्प व्यर्थ है। ३७. भैया ! मैं बीमार हूं, अतः मुझसे कोई काम नहीं होता । ऐसा नहीं है, क्योंकि इस अवस्था में भी जानने देखने का कार्य हो ही रहा है। ३८. द्रव्य का नाम वस्तु क्यों पड़ा? . वस्तुत्व गुण युक्त होने से द्रव्य 'वस्तु' कहलाता है । ३६. आप जीव हैं शरीर नहीं ऐसा क्यों ? मेरा और शरीर के प्रयोजनभूत कार्य जुदा-जुदा हैं, मेरा जानना देखना और उसका क्षीर्ण होना। अतः मैं अपने स्वचतुष्टय में स्थित हूँ और शरीर मेरे स्वचतुष्टय से न्यारा है। (४. द्रव्यत्व गुण) (४०) द्रव्यत्व गुण किसे कहते हैं ? जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य सदा एकसा न रहे और उसकी
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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