SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २-द्रव्य गुण पर्याय ३-गुणाधिकार (च) पार १९. छहों सामान्य गुणों के क्रम का सार्थक्य दर्शाओ। (क) किसी पदार्थ का अस्तित्व होने पर ही अन्य-अन्य बातों की चर्चा प्रयोजनीय है, इसलिये 'अस्तित्व गुण' सबसे पहिले है। (ख) जो भी है उसका कुछ न कुछ प्रयोजनभूत कार्य अवश्य होना चाहिये अन्यथा वह वस्तु ही नहीं है। इसलिये दूसरे नम्बर पर 'वस्तुत्व' है । (ग) वस्तु में प्रयोजनभूत कार्य सम्भव नहीं जब तक कि उसमें परिणमन न हो, इसलिये तीसरे नम्बर पर 'द्रव्यत्व' गुण है। (घ) उपरोक्त तीनों बातों की सिद्धि तभी हो सकती है जब वह किसी न किसी के ज्ञान का विषय बन रहा हो। इसलिये चौथे नम्बर पर 'प्रमेयत्व' है। परिणमन करते हुए उसे अपने स्वतंत्र अस्तित्व की रक्षा अवश्य करनी चाहिये, ताकि बदलकर दूसरे रूप न हो जाये; अन्यथा मभी द्रव्य मिल जुलकर एकमेक हो जायेंगे। इसी से पांचवें नम्बर पर 'अगरुल घृत्व' गण कहा गया है। (छ) द्रव्य की स्वतन्त्र सत्ता टिक नहीं सकती यदि गुणों का समूह न हो; और गुणों का समूह रह नहीं सकता जब तक कि उनका कोई आधार या आश्रय न हो। आश्रय प्रदेशवान ही होता है इसलिये अन्त में 'प्रदेशत्व' गुण कहा गया है। २०. अपने में छहों सामान्य व विशेष गुण घटित करके दिखाओ । 'मैं हूँ' यह मेरा अस्तित्व है। जानना देखना मेरा प्रयोजनभूत कार्य है, यही मेरा वस्तुत्व है। मैं प्रति क्षण बालक से वृद्धत्व की ओर जा रहा हूँ यह मेरा द्रव्यत्व है। मुझको मैं व आप सब जानते हैं यह मेरा प्रमेयत्व है। मैं कभी भी बदल कर
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy