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________________ २] जैन सिद्धांतसंग्रह. ।.. ॐ पञ्चपरमेष्ठी के नाम गर्मित हैं । यथा अर्हन्ता अशरीरा. आयरिया तह· उवज्झयाः मुनिना । -1 पढ़मक्खर निप्पणो ॐकारोय पंचपरमेष्टी ॥ ही में २४ तीर्थकरोंके नाम गर्भित हैं । • ..(४) मेरी भावना । .. बाबू जुगलकिशेरनी कृत) · तत्पर रहते हैं | जिसने रागद्वेषकामादिक जीते, सब जग जान लिया । ' सब जीवोंको मोक्षमार्गका निस्पृहः हो उपदेश दिया ॥ बुद्ध, वीर जिन, हरिहर "ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो ।.. भक्ति भावसे प्रेरित हो यह, चित्त उसीमें लीन रहो ॥ श्रा विषयोंकी आशा नहिं जिनके, साम्य-भाव- धन रखते हैं। निज-परके हित साधनमें जो निशदिन स्वार्थत्यागकी कठिन तपस्या, विना खंद ऐसे ज्ञानी साधु जगतके, दुखसमूहको रहे सदा सत्संग उन्होंका, ध्यान उन्होंका नित्य रहे । - उनही जेनी चर्या में यह चिच सदा अनुरक्त रहे | नहीं सताऊँ किसी जीवको, झूठ कभी नहिं कहा करूँ | परधनवांनता पर न लुभाऊँ, संतोपामृत पिया करूं ॥३॥ अहंकारका भाव न क्यूँ नहीं किसी पर जो करते हैं । : हरते हैं ॥ २ ॥ • देख दूसरोंकी बढ़तीको, कभी न इर्पा-भाव . रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य - व्यवहार करूँ 1, ; करूँ 1.-. ॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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