SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०] जैनसिद्धांतसंग्रह। इस प्रकार बोलकर साष्टांग नमस्कार करना चाहिये। नमस्कारके पश्चात् पूजनक लिये चांवल चढ़ाना हा तो नीचे लिखा लोक तथा मंत्र पढ़कर चढ़ावे अपारसंसारमहासमुद्रपोचारणे प्राज्यतरीन्युभक्त्या। . दीक्षितापवलाक्षतोघर जिनेन्द्रसिद्धान्तयतीन् योऽहम ॐ ही देवशास्त्रगुरुम्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति खाहा। यदि पुष्पोंसे पूजन करना हो तो नीचे लिखा श्लोक और मंत्र पढ़कर चढ़ावे। विनीतभव्यानविबोधसूर्यान् वर्यान सुचर्याकथनकधुर्यान् । कुन्दारविन्दप्रमुखप्रसूनैर् जिनेन्द्रसिद्धान्तयतीन् यनेऽहमारा ॐ ही कामवाणविध्वंसनाय देवशास्त्रगुरुभ्यः पुष्पं निर्वामीति साहा! यदि किसीको लोंग, बदाम, एलायची दाडिम मादि कोई प्रामुक फल चढ़ाना हो तो नीचे लिखा, श्लोक और मंत्र पढ़कर चढ़ावे। क्षुभ्यद्विलुभ्यन्मनसाप्यगम्यान कुवादिवादाऽस्खलितप्रमावान् । फरलं मोक्षफलामिसारैर जिनेन्द्रसिद्धान्तयतीन् यजेऽहमा ही मोक्षफलप्राप्तये देवशास्त्रगुरुभ्यः फलं निर्वपामीति खाहा । ____ यदि किसीको अर्घ चढ़ाना हो, तो नीचे लिखा श्लाक व मंत्र बोलकर चढ़ाना चाहिये। मद्वारिगन्धाक्षतपुष्पजातेर नैवेद्यदीपामलधूपधूम्रः।। फविचित्रनिपुण्ययोगान् जिनेन्द्रसिद्धान्तयतीन् योऽहम ही अनर्घ्यपदमाप्तये देवशास्त्रगुरुभ्योऽय समर्पयामि ॥॥ -
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy