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________________ . th Fls रविवृतधाम चोपाई-श्री संखडायक पाजिलेय मुमति र दाता, परमेश। सुमरी, शारई ऐड परिवृन्दु । दिनकर वृत्त प्रगटी सांसद । जानारस नगरी र विशाल प्रनामाल पाटो मा !hair pre भतिसागर तहों के जान जालो मा को सामान : सामुत्रियां गणासुन्दरनाम सातपुत्र हा अमियम PTS FE पदाच गोग को पूरणीत बालरूप पूणा सविनीत HEN FR सहसा होमित जिनधाय । मापे पति पति इंडिल मा सुन मुनि आगम इपित भये । सई लोग इन्दनको, गये गुरु वाणी सुनके गुणवत्ती दिन वह जो की विनतो छ का करणानिधि भाष-मुनिराय। सुनो सुप तम चित्त लगायतका नई आमा सित वाडीले अतिम रविलाई ॥६॥ अनुशन अथवा घुहार। सुवादिलो हो परिहार Fort नव फल्युत पंचामृतमा । उस प्रकार हम MOHITE उत्तम फल यासीनान ना आवर दी writings याविधि, को नव का प्रमाण या होय माने कल्याण अयवा एक वर्षे इक सार । कीने रविवत मनहि विचार । सुन साहुन निन धाको महाकामिया निन्दित मई ॥९॥ वृतानिदासे ,निन भये साजन योजनाये वहां मिनदत्त सेठ गृह रहें । पूर्व दुःतका फल कहें ॥१०॥ मातपिता गृह दुःखित सदा अवधि सहित मुनि पूछे तदा। IFFBE D . 2
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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