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________________ जैनसिद्धांतसंग्रह। जय अरषस्वभाव शिवगामी, ऊहापोह विगत गुणवोमी ॥ . जय ऋषम शक्लेश विहीना, ऋषिगण नपत सुपद निन चना। जय एकान्त कुनय तमहारी, एक अनेकरूप अविकारी ॥ नय भोनस्विन तत्वकाशक, ओङ्कारतुव ध्वनि भ्रम नाशक। जय अंबरवत शुद्ध विरागी, अंतरवाह्य परिग्रह त्यागी । नय कल्याण कल्पतरु घोरा, कर्मसुभट बक नाशक वीरा । जय खगपति वंदितनिननामी, खकविधि हरण शरण नगस्वामी। जय गणेश तुम मुगुण अनंता, गणित न सुर गुर पाहिं अंता। जय धनहर्षसुधा वर्षावन, धनरस नग मष बाप नशावन ॥ नय चहुँगति दुख नाशक स्वामी, चमर दुरत चौसठ अभिरामी। जय छत्रत्रय शोभित ईशा, छरित होत गुण कहत मुनीशा ।। जय जगदीश जयति मिनदेवा, जन्मजलधि वारक स्वयमेवा । नय शपकेतु दलन मन भावन, शटित कर्म हन शिवपुर जावन ॥ नय टोत्कीर्ण सम ध्यानी, दरत दुःखपद नमत सुज्ञानी । जय ठहरत निमपद अविनाशी, उग्यो जगढ विस मोह विनासी । जय डरनेह मोह मद हीना, डगन मरत नम चलत मदीना। मय हन नन्म समय नगपाली, उरत सहसमठ कळस विशाली । नय तत्वार्थकोष दातारी, तरन तरंड भवोदधि वारी। जय थल मल नम मक्कि सहायक, थम्भ मुहद वृषके मुखदायक। जय दयाल दुख दकन अपारी, दर्शनीय अनुपम छबिधारी। भय धर्मेश भषम उद्धारी, धन्य साम्य वर्द्धन धन पारी॥ नय नब केवल कधि सुमोगी, नयनानंद नग्न संयोगी। नव परमातम परम प्रमानी, परमानंद प्रथम मुख दानी ॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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