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________________ जैनसिद्धांतसंग्रह। W Ite सप्त सुर वानीं । नृत्य तांडव करत इन्द्र पति छानहीं ॥ करत उच्छाहसों निनसु पद धारती । शचिय सुरपति सहित कर. ॥ १२॥ भव्य जन माय जिन जन्म उत्सव करें। आपने जन्मके सकल पातिक हर ॥ भक्ति गुरुदेवकी. पार उत्तारती । शचिय सुरपति सहित करति मिन भारती ॥ १३ ॥ धत्ता-निनवर पद पुमा भावसु हूना, पूरण नित आनँद भया । जयवंत सुहासा पूजौ, लाल विनोदी भाल नया ।। ॐ ह्रीं अष्टादशदोषरहित षट्चत्वारिंशगुणसहित श्रीमद. ईपरमेष्टिने पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा। चौपाई-मंगल गर्म समयमें जोय । मंगल भयो जन्ममें जोष । मंगल दीक्षा धारत जोय । मंगळ ज्ञान प्राप्तिमें जोय ॥ मंगल मोक्ष गमनमें नोय । इन्द्रन कीनौ हर्षित होय । जावू वार वारहौं सोय । हे प्रभु ! दीने मंगल मोय ॥ - इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलि क्षिपेत्) -202000 (१३) लघु पंचपरमेष्टी विधान। स्व० कवि चन्द्रनी कृत दोहा-श्रीधर श्रीकर श्रीपती, भव्यनि श्रीदातार । श्रीसर्वज्ञ नमों सदा, पार उतारन हार ॥१॥ अडिल्ल छंद-चार घातिया कर्म नाशि केवल लयो। . समोशरण तहां धनद भाय सुंदर ठयो ।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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