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________________ जैन सिद्धांत संग्रह । अब होट भव भवं स्वाभी मेरे, मैं सदा सेवक रहो । कर जोड़ यो वरदान मांगो, मोक्षफल जावत हों ॥ १२ ॥ जो एकमहिं एक राजे, एकमांहि अनेकनो । इक अनेकको नहीं संख्या, नमो॑ सिद्ध निरंजनो ॥ ॥ चौपाई | ३०६ ] मैं तुम चरणकमलगुणगाय । बहुविध भक्ति करो मन लाय || जनम जनम प्रभु पाऊं तोहि । यह सेवाफल दीने मोहि ॥१॥ कृपा तिहारी ऐसी होय । जामन मरन मिटावो मोय । बारवार मैं विनती करूं । तुम सेये भवसागर तरूं ॥ ११ ॥ नाम लेत सब दुख मिट बाय । तुम दर्शन देख्यो प्रभु आय । तुम हो प्रभु देवनके देव । मैं तो करूं चरण तव सेव ॥१६॥ मैं आये। पूजन के काज | मेरो जन्म सफल भयो आज || पूजा करके नार्ट शीस | सुझ अपराध क्षमहु जगदीश ॥ १७ ॥ दोहा - सुख देना दुख मेटना, यही तुम्हारी चान ! मो गरीबकी चीनी, लुन लोज्यो भगवान ॥ १८ ॥ दर्शन करते देवका, यदि मध्य अवसान | स्वर्ग सुख भोगकर, पावै मोक्ष निदान ॥ १९ ॥ जैसी ममतुमविषै ओर घरे नहिं कोय, 3 जो सुनने ज्यांत है, तारनमें नहिं सोय ॥ १० ॥ नाथ निहारे नामतें, अघ छिनमः पलाय | ज्यों दियर परकाशते, अंधकार विनशाय ॥ २१ ॥ बहुत प्रशंसा क्या करूं, मैं प्रभु बहुत मजान पूजविधि जनूं नहीं, शरण राखि भगवान ! इनि भाषास्तुतिपाठ सात | ,
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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