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________________ ~ ३०२] जैनसिद्धांतसंग्रह ।.. महिमा अगम अपार । गणधर ध्यन न पा पार। तुम मद्धत मैं -मति कर हीन । कही भक्तिवश केवल लीन ॥ ३८ ॥ पत्ता-श्री 'सिपक्षेत्र भति:मुख देतं ॥ सेवन नासौ विघ्न हरा ॥ मरु कर्म . विनाश सुख-पयासै फेवल भासै सुःख करा ॥ १९॥ ॐ ही श्री . सम्मेदशिखिर सिद्धपद प्राप्ताय सिरक्षेत्रेभ्यो महा। दोहाशिखिरसम्मेद पूजो सदा, मन वच तन नर नारि ॥ सुर शिवके जे फल लहैं । कहते दास नवारी ॥१०॥ इत्यादि माशीर्वादः। . चतुर्थ खंड। (१) शांतिपाठः (शांतिपाठ बोलते समय दोनों हाथोंसे पुष्पवृष्टि करना चाहिये। दोषकवृत्तम ।। शान्तिनिनं शशिनिर्मलवक्त्रं शीलगुणवतसंयमपात्रम् । माष्टशतातिरक्षणगात्रं नौमि जिनोत्तममम्बुननेत्रम् ॥ १॥ पश्चममीसितचक्रधराणां पृमितमिन्द्रनरेन्द्रगणेश्च । शान्तिकरं गणशांतिममीप्सुः षोड़शतीर्थकर प्रणमामि ॥२॥ - दिव्यतरू सुरपुष्पवृष्टिदुन्दुमिरासनयोजनघोषौ ।। भातपवारणचामरयुग्मे यस्य विभाति च मण्डकतेनः ॥ ३ ॥ नगदर्चितशांतिनिनेंद्र शान्तिकर शिरसा प्रणमामि ? सर्वगणाय तु यच्छतु शान्ति महामरं पठते परमां च ॥४॥ . . ........ ...
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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