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________________ जैनसिद्धांतसंग्रह। पूना करना, मन शुद्ध रखना, वचन विनयरूप बोलना, शरीर शुद्ध रखना, शुद्ध आहार देना।. . . . . . : इसे नवधा भक्ति कहते हैं अर्थात् दातारकोयह. नव प्रकारकी.. भक्तिपूर्वक पात्रदान करना चाहिये। दातारके सात गुण-१. श्रद्धावान् होना, २ शक्तिवान् होना, ३ अलोभी होना, ४ दयावान् होनी, ५ भक्तिवान् होना, ६ क्षमावान् होना, ७ विवेकवान् होना। .:. दावारमें यह सात गुण होते हैं अर्थात् जिसमें यह सात गुण हों वह सच्चा दातार है। दातारके पांच भूषण-१ आनन्दपूर्वक देना,आदर-: पूर्वक देना, ३ प्रिय वचन कहकर देना, ४ निर्मल भाव रखना, ५ दान दकर जन्म सुफल मानना। दातारके पांच दूषण-विलम्बसे देना, विमुख होकर देना, दुर्वचन कहकर देना, निरादर करके देना, देकर पछताना। __ ये दाताके पांच दूपण हैं अर्थात् दातारमें यह पांच बात' · नहीं होनी चाहिये ।। [२३] ग्यारह प्रतिमाओंका सामान्य स्वरूप ।। दोहा। प्रणम पंच परमेष्ठि-पद; जिन आगम अनुसार; श्रावकंप्रतिमा एकदश, कहुं भविजन हितकार ॥२॥ सवैया. ३१ ॥ श्रद्धा कर ब्रते. पालें, सामायिकै दोष टाले, पोसा मॉडे, साचित्तकौं त्यो
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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