SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन सिद्धांतसंग्रह | [ २९१ सिद्धक्षेत्रेभ्यो संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥ तंदुल धवल सु उज्वल खासे धोयके । हेम वरनके थार भरौं शुचि होय ॥ पूजौ शिखिर० । ॐ ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये मक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥ फूल सुगंध सु ल्याय हरषसों आन चढ़ायौ । रोग शोक मिट नाय मदन सब दूर पायौ ॥ पूजौ शिखिर० । ॐ ह्रीं श्रीं सम्मेद - शिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो कामबाण विध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ||४|| षट् रस कर नैवेद्य कनक थारी भर ल्यायो ॥ क्षुषां निवारण हेतु सु पूजौ मन हरषायो || पूजौ शिखिर० । ॐ ह्रीं श्री सम्मेद - 1 शिखर सिद्धक्षेत्रम्यो सुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा || ५ || लेकर मणिमय दीप सुज्योति उद्योत हो । पुनत होत स्वज्ञान मोह तम नाश हो || पुनो शिखिर० । ॐ ह्रीं श्रीं सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेम्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥ दस विधि धूप अनूप अग्नि मैं खेबहूं | भष्ट कर्मको नाश होतं सुख पाहूं ॥ पुमो शिखिर० । ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखर - सिद्धक्षेत्रेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ||७|| केला लोंग · सुपारी श्रीफक ल्याइये । फल चढ़ाय मनवांछित फल सु पाइये ॥ पूजौ शिखिर० । ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो मोक्षफलप्राप्ताय फर्क निर्वपामीति स्वाहा ॥८॥ जलगंधाक्षित फूल सु नेवन कीजिये । दीप धूर फळ : अ चढ़ाइये ॥ पूजौ शिखिर० । ॐ ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो मनपदप्राप्ताय अर्ध निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥ परडी छन्द - श्रीवीस तीर्थंकर हैं जिनेन्द्र । मरु हैं असंख्य . ·
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy