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________________ जैनसिद्धांतसंग्रह। [२७९ वृष्टि । कर पो भव भवि धान्य श्रेष्टि । इक मांसं आयु अवशेष जान । जिन योगनकी सुप्रवर्त हान ॥ ७ ॥ ताही थल तृतिशित ध्यान ध्याय । चतुदशम थान निवसे जिनाय ॥ तह. दुचरम समय मझार ईश । प्रकृति जुबहत्तर तिनहि पशि ॥ तेरहनठ चरम समय मझार । करके श्री जगतेश्वर प्रहार ॥ अष्टमि अवनी इक समयमद्ध | निवसे पाकर निन अचल रिद्ध ॥ ९॥ युत गुण वसु प्रमुख अमित गुणेश । हेरहे सदाही इमहिं वेश ॥ तबहीसे सो थानक पवित्र । त्रैलोक्य पूज्य गायों विचित्र ॥ मैं तसु रज निन मस्तक लगाय । बन्दी पुन पुन मुवि शाशनाय || ताही पद वांछा उर मझार । घर अन्य चाह वुद्धि विडार ॥११॥ दोहा।' श्री चम्पापुर जो पुरुष, पूजै मनवच काय । वणि "दौल " सो पायही, सुख संपति अधिकाय ॥ इत्याशीर्वादः ॥ — इति श्री चम्पापुर सिद्धक्षेत्र पूना समाप्तम् । (२६) महावीर जिनपूजा (कवि वृन्दावनजीकृत) श्रीमत बीर है। भवपरि, भरै सुखसीर अनाकुलताई। . केहरि अंक अरीकरदक, नये हरिपकतमौलि सुहाई ॥ मैं तुमी इत थापतु हौं प्रभु, भक्तिसमेत हिये हरषाई । हे करुणाधनधारक देव, इहां अब तिष्टहु शीनहि आई ।। ॐ ह्रीं श्रींवर्द्धमानजिनेन्द्र अत्र 'अवतर अवतर। संवौषट् । . अत्र तिष्ठ विष्ठ ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो मव भव । वषट् ।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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