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________________ जैन सिद्धांतसंग्रह | [ २६७ यह ऐसा क्षेत्र महान जान । हम करी वंदना हर्ष ठान ॥२१॥ उनईस शतक उनतीस जान | सम्वत अष्टमि सित फाग मान ॥ सब संग सहित वंदन कराय । पूजा कीनी आनंद पाय ॥२२॥ मन दुःख दूर कीने दयाल | कहें चद्र कृपा क जे कृपाल || मैं अल्प बुद्धि जयमाक गाय । भवि जीव शुद्ध लीने बनाय ॥२३ धत्ता- तुम दया विशाला सब क्षितिपाळा तुम गुणमाला कण्ठवरी । ते भव्य विशाला तम जगजाला नावत भाका मुक्तिवरी ॥ इत्याशीर्वादः ॥ (२१) सोनारे पूजा । अडिल्ल - जम्बू द्वीप मंझार भरत शुभ क्षेत्र है । आर्यखंड सुभाना भद्रत देश है || सोनागिरि अभिगम सुपर्वत है वहां । पंचकोड़ि रु अई गये मुनि शिव जहां ॥ १ ॥ दोहा- सोनागिरिके शीसपर, वहुत जिनालय जान । चन्द्रपभू जिन आदिदे, पूजों सब भगवान ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धक्षेत्र सोनागिर अत्र अवतर अवतर संवौषटाह्वाननं । मत्र विष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ॥ अत्र ममसन्निहितो भव भव अव सन्निधिकरणं । सारंग छंद । पद्मद्रहको नीर ल्याय गंगासे भरके । कनक कटोरी माहिं हेम झारिन में घर के || सोनागिरिके शीत भूमि निर्वाण सुहाई । पंचकोड़ि भरु भई मुक्ति पहुंचे मुनिराई ॥ -
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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