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________________ १४५] अनसिद्धांतसंग्रह। सहस वश महां. नोनन लखत ही मुखं ॥ पावरीकोंन दोमाहि दो रतिकरं । भान०॥ ५॥ शैल बत्तीस इक सहस नोजन कहे। चार सोले मिले सर्व बावन लहे ॥ एक इक शीशपर एक मिनमदिरं । भवन ॥१ विंब मठ एकसौ रतनमई सोहही। देवदेवी सरव नयनमन मोह ही॥ पांचसे धनुष तन पद्ममासनपरं ।। भवन ॥ ७॥ काक नख मुख नयन स्याम मरु स्वेत है। स्यामरंग भोह सिरकेश छवि देत हैं। ___ वचन बोलत मनों हसत कालुपहरं ॥ भवन ॥८॥ कोटिशशि मानधुति तेम छिप जात हैं। महांवराग परिणाम ठहरात हैं। बयन नहिं कहैं कखि होत सम्यकपरं । भवन०॥९॥ सोरठा। नंदीश्वर निनघाम, प्रतिमामहिमाको कहें। 'चानत' लीनों नाम, यहै कि शिवमुख कर ॥१०॥ ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरहीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपञ्चाशजिनालयस्थजिनप्रतिमाग्यः पूर्णाध निर्वपामीति स्वाहा। [मयके बाद विसर्जन करना चाहिये ]
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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