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________________ जनसिद्धांतसंग्रह। उत्तम मक्षत मिनरान, घुनघरे सोहे ॥ सब जीते भक्षसमान. तम सम मा को है। नंदी॥an ॐ ही श्रीनन्दीश्वरहीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपञ्चाक्षन्जिनालयस्थनिनप्रतिमाम्यो भक्षयपदप्राप्तये नक्षतान निर्वपामि || तुम कामविनाशक देव, घ्याऊं फूलनसौं। बहु शील उच्छमी एक, छुटू सुननसौं ॥ नंदी ॥१॥ ही श्रीनन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपचाशचि. नालयस्यनिनपतिमाभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निवपामि ॥ नेवन इन्द्रियवनकार, सो तुमने चूरा। चर तुम ढिग सोहे सार, मचरन है पूरा ॥ नन्दी० ॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपञ्चायजिव्यस्थनिनप्रतिमाम्यः क्षुषारोगविनाशनाय नवे निर्वामि ॥५॥ दीपककी ज्योति प्रकाश, तम वनमाहि मे ॥ टै करमनकी राश, ज्ञानकणी दास ॥ नन्दी० ॥६॥ ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपञ्चाशजिनालयस्थमिनपतिमाम्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं ॥६॥ कृष्णागरुघूपसुवास दशदिशिनारि रै। अति हर्षभाव परकाश, मानों नृत्य करें। नंदी. ॥७॥ ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपञ्चाशनिनाम्यस्यनिनप्रतिमाभ्यो अष्टधर्मदहनाय धुपं निर्वयामि ॥ ७ ॥ • 'बहुविषफल ले तिहुंकाल, भानंद राचत हैं। तुम शिवफल देहु दयाक, तो हम भाचत है।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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