SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० ] जैनसिद्धांतसंग्रहः । .7 छीने सदा तनको मतन यह एक संगमः पाकियै । बहु रुल्यो नर्कनिगोदमाहिं, कषायविषयनिटालियेः ॥ शुभ करमजोग सुधार आयो पार हो दिन मात है। 'धानत' घरमकी नाव बैठो शिवपुरी कुंशलात है. ॥ २ ॥१६० ॐ ह्रीं त्रयोदशविधिसम्यकचारित्राय महार्घ्यं निर्वपा• ॥२॥ अथ समुचय जयमाला । दोहा - सम्यकदरशन ज्ञान व्रत, इन विन सुकत न होय । : : अंघ पंगु अरु आलसी, जुदे न दव-लोय ॥ १ ॥ तामै ध्यान सुथिर बन आवै । ताके कमरबंध कट जावै । वाषै शिवतिय प्रीति बढ़ावै । जो सम्यकरतनत्रय ध्यावै ॥ २ ॥ ताक चहुंगतिके दुख नाहीं । सो न परै भवसागरमांहीं ॥ जनमबरामृत दोष मिटावै । जो सम्यकरतनत्रय ध्यावै ॥ ३ ॥ सोई दशलच्छनको साधै । सो सोलहकारण आराधे !!. सो परमातम पद उपजावै । जो सम्यकरतनत्रय ध्यावै ॥ ४ ॥ सोई शक्रचक्रिपद लेई । तीनलोकके सुख बिलसेई ॥ सो रागादिक भाव बहाने । नो सम्यकरतनत्रय ध्यावै- 11.50सोई कोकालोक निहारें । परमानंददशा विखारैः ॥ 1 आप तिरे औरन तिरवावै । जो सम्यकरतनत्रय ध्यावै ॥ ६ ॥ 1 1 दोहा - एकस्वरूपप्रकाश निन, वचन कह्यो नहिं जायः ॥ 'तीनमेद व्योहार सब, धानतको सुखदाय ॥ ७ सम्यग्रत्नत्रयाय महार्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । ( अर्ध्यके बाद विसर्जन करना चाहिये । "
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy