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________________ जनसिद्धातसंग्रह। [२३३ अथ जयमाला। सोरठा। प्रथम सुदर्शन स्वाम, विनय अचल मदर कहा। विद्युन्माली नाम, पंचमेरु जगमें प्रगट ॥ १ ॥ वेसरी छंद । प्रथम सुदर्शन मेरु विराजै । भद्रशाल वन भूपर छाजै। . चैत्यालय चारों सुखकारी । मनवचतन वंदना हमारी ॥१॥ 'ऊपर पंच-शतकपर सोहै। नंदनवन देखत मन मोहै चि०॥॥ साढ़े बासठ सहस ऊंचाई । वन सौमनस शोमा अधिकाई ॥२॥ ऊंचा जोजन सहस छतीसं । पांडुकवन सोहै गिरिसीसं चि०॥५॥ चारों मेरु समान बखानो । भूपर भद्रसाल चहुं नानो ॥ चैत्यालय सोलह सुखकारी । मनवचतन वंदना हमारी ॥६॥ ऊंचे पांच शतकपर माखें। चारों नंदनवन अभिलाखे । चैत्यालय सोलह सुखकारी । मनबचतन वंदना हमारी ||७|| •साढ़े पचपन सहस उतंगा | वन सौमनस चार बहुरंगा ॥ . चैत्यालय सोलह सुखकारी । मनवचतन वंदना हमारी ॥८॥ उच्च अठाइस सहस बताये । पांडक चारों नव शुभ गाये ॥ चैत्यालय सोलह सुखकारी । मनवचतन वंदना हमारी ॥९॥ सुरनर चारन वंदन आ । सो शोभा हम किह मुख गावें ॥ चैत्यालय अस्सी सुखकारी । मनवचतन वंदना हमारी ॥१०॥ दोहा-पंचमेरुकी आरती, पढ़े सुनै जो कोय।। • धानत, फल जाने प्रभु, तुरत महासुख होय ॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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