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________________ जैनसिद्धांतसंग्रह । [२१६ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तचतुर्विशतिजिनसमूह.! पत्र अवतर भवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीवृषमादिवीरान्त चतुर्विशतिनिनसमूह ! अत्र विष्ठ तिष्ठ | 3:31 ॐ ही श्रीवृषभादिवीरान्तचतुर्विशति जिनसमूह ! पत्र मम सन्निहितो भव भव वषट । मुनिमनसम उज्जल नीर, पामुक गन्ध भरा। भरि कनकाटोरी धीर, दीनी धार धरा ॥ चौंवीसों श्रीनिनचंद, मानन्दकंद सही। पदननत हरत भवफंद, पावत मोक्षमही ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तेभ्यो जन्मभरामृत्युविनाशनाय नलं। गोशीर कपूर मिलाय, केशर रंगमरी । जिनचरनन देत चढ़ाय, भवाताप हरी ॥ चौवीसों ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तेभ्यो भवातापविनाशनाय चंदनं । वंदुल सित सोमसमान, सुंदर अनियारे । मुकताफलकी उनमान, पुन धरों प्यारे । चौवीसो० ॥३॥ ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तेभ्योऽभयपरप्राप्तये अक्षतं । वरकंन कदंव कुरंड, सुमन सुगंध भरे । जिन अन घरौ गुनमंड, कामकलंक हरे ॥ चौबीसों ॥ १ ॥ ॐ ही श्रीवृषभादिवीरान्तम्धः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं । मनमोदनमोदक आदि, सुंदर सद्य बने । रसपरित प्रामुक स्वाद, जनत छुधादि हने ॥ चौवीमों ॥५॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तेभ्यः क्षुवारोगविनाशनाय नैवेचं । : तमखंडन दीप जगाय, पारों तुम आगे। सब तिमिरमोह-क्षय नाय, ज्ञानकला जागै ॥ चौवीसा० ॥६॥ .
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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