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________________ A ८1 जैनसिद्धांतसंग्रह। सम्मेदशिखर, अंतर-इनसे ९ सौ कोटि सागर गए पीछे ८ वें चन्द्रप्रम भए । . ८-चन्द्रप्रभ अर्धचन्द्रका चिह्न । पहला भव वैजयंत, जन्मनगरी चन्द्रपुरी, पिताका नाम महासेन. माताका नाम लक्ष्मणा, गर्मतिथि चैत्र वदी ५, नन्मतिथि पौष वदी ११. जन्मनक्षत्र अनुराधा, काय ऊंची १५० धनुष, रंग श्वेत (सफेद), आयु १० लाख पूर्व, दीक्षा तिथि पौष वदी ११, दीक्षावृक्ष नाग, केवलज्ञान तिथि फाल्गुण वदी ७, गणधर ९६, निर्वाणतिथि वृन्दावन और रामचन्द्रकृत पाठोंमें फाल्गुण सुदी ७, वखतावरकृतमें माघ वदी ७, निर्वाण आसन खगासन, निर्वागस्थान सम्मेदशिखर, अन्तर-इनसे ९० कोटि सागर गए पीछे ९वें पुप्पदन्त भए । १-पुष्पदन्तके नाकू (मगर) का चिह्न। __पहला भव अपरानित, जन्मनगरी काकन्दी, पिताका नाम मुग्रीव, माताका नाम रामा, गतिथि फाल्गुन वदी ९, जन्मतिथि मार्गशिर सुदी १, जन्मनक्षत्र मूला, काय ऊची १०० धनुष, रंग श्वेत (सफेद), आयु २ लाख पूर्व, दीक्षातिथि मार्गशिर सुदी १, दीक्षावृक्ष शाल, केवलज्ञान तिथि कार्तिक सुदी २, गणधर ८, निर्वाणतिथि वृन्दावनतमें कार्तिक मुदी २, वखतावरकृतमें आश्विन सुदी ८. रामचंद्रकृतमें भादो मुरीद, निर्वाग आसन खशासन, निर्वाणस्थान सम्मेदशिखर, अंतर-इनसे ९ कोटी सागर गए पछि १० चे शीतलनाथ भए ।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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