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________________ जैन सिद्धांतसंग्रह - 1: विश्वास वचन जिन शासन नाहीं । ते भोगातुर नकों माहीं ॥ सुख दुख. पूर्व विपांक 'अरे मत ● कठिनः १ कर मित्र. जन्म मानुषका लीया ॥७॥ ताहि वृथा मत खोय जो आपा पर भाई ॥ गये न मिलती फेर . समुद्रमें डूबी राई । भला नर्कका बास सहित जो सम्यक पाता ॥ 1 • . • [ २४३ होय सहें दुख कल्पै नीया । बूरे बने जो देव नृपति मिथ्या मद माता ॥ ८ ॥ ना खर्च धन होय नहीं काहसे लरना । नहीं दीनता होय नहीं घरका परि हरना ॥ सम्यक, सहज स्वभाव आपका अनुभव करना । या विन जप तप व्यर्थ कष्टके माहीं परना ॥ ९ ॥ क्रोड़ बातकी बात अरे बुधजन उर घरना । मन वच. तन शुचि होय गहो जिन वृषका शरणा | ठेरिसौ पंचास अधिक 1 शुक्ल वैशाख. ढाल षह शुभ उपजानो ॥ नव सम्वत् जानो ॥ तीन १० ॥ . - इति छह ढाला पण्डित बुध जनकृत सम्पूर्णम् । (२६) निशिमोजन कथा | ( कविवर भूधरदासजीकृत ) दोहा - नमो शारदा सार बुब, करें हरें अघ लेप । निशभोजन मुंजन कथा, लिखूं सुगम संक्षेप ॥१॥ ।।" जम्बूद्वीप जगत् विरूपात् । भरतखंड छबि कंहियन नांत ॥ 4 - तहां देशंकुरु नांगल नाम । हस्त नागपुर. उत्तम ठाम ॥२॥ यशोभद्र भूपति गुण बास । रुद्रदत्त द्विम मोहित तास ॥ आश्वनि; मास तिथि दिन आराम ! पहली पड़वा कियो सराप ॥ २३ ॥ बहुत
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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