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________________ VAN जैनसिद्धांतसंग्रहः। ।१०९ (१५) फूलमाल पच्चीसी. दोहा-जैन धरम पन क्रिया, दया धरम संयुक्त । यादों वंश- विर्षे जये, तीन ज्ञान संयुक्त ॥१॥ भयो महोछो नेमिको, जूनागड़ गिरनार । ; जाति चुरासिय जैनमत जुरे क्षोहनी चार ॥ ३॥ • माल भई जिनराजकी, गूंथी इन्द्रन आय। . : देशदेशके भव्य जन, जुरे लेनको धाय ॥ ३ ॥ : . छप्पय । देश गौड़ गुजरात चौड़ सोरठि वीजापुर । करनाटक काशमीर मालवो अरु अमेरधुर ।। • पानीपथ ही सार और बैराट महां लघु । . . . काशी अरु मरहट्ट मगध तिरहुत पहन सिंधु ॥ तह वंग चंग बंदर सहित, उदधि पार लौ जुरिय सव। . आएं जु चीन महं चीन लग, माल भई गिरनारी जब ॥ ४ ॥ • • • . नाराच छन्द । . . . सुगंध पुष्पं वेलि कुंद केतकी मगायके । चमेलि चंप सेवती जुही गुही जु लायकें । गुलाब कंज लायची सबै सुगंध जातिके। सुमालती महा. प्रमोद लै अनेक भांतिके ॥५॥ सुवर्ण तारसोय बीच मोति लाल लाइया। सु हीर पन्न नील पीते पद्म जोति छाइया । शची रची विचित्र भांति चित्त दे वनाई है। सुइंद्रने उछाहसों जिनेंद्रको चढाई है ॥६॥सुमागहीं अमोल माल हाथ जोरि बानियें। जुरी तहां चुरासि जाति रावराज जानिये ॥ अनेक और भूपलोग सेठ
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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