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________________ [ १०५ " पर उपकारी अल्प अहारी. सामायिक विधि ज्ञानी ।। १ ।। जाप जपे तिहुं योग घरे थिर तनकी समता टारै 1 अन्त समय वैराग्य सम्हारे ध्यान-समाधि विचार ॥ आग लगे अरु नाव जु डूबे धर्म विघन जब आवे । चार प्रकार अहार त्यागिके मंत्र सु मनमें ध्यावे ॥ १ ॥ रोग असाध्य जहां बहु देखे कारण और निहारे ! बात बड़ी है जो बनि आवे भार भवनको डारे ॥ जो न बने तो घरमें रहकर सबसों होय निगला | मात पिता सुत त्रियको सोंपै निन परिग्रह अनि काला ॥४॥ कछु चैत्यालय कछु श्रावक जन कछु दुखिया धन देई | क्षमा क्षमा सब ही सों कहिये मनकी शल्य होई शत्रुन सों मिलि निमकर जोरे में बहु करी है बुगई · तुमसे प्रीतमको दुख दीने ते सब बकसो भाई । ९ ॥ धन धरती जो मुख सो मांगे सो सब दे संतोषे । छहों कायके प्राणी ऊपर करुणाभाव विशेषे || ऊंच नीच घर बैठ जगह इक कछु भोजन कछु पयले । - दूधाहारी क्रम क्रम तजिके छाछ अहार गहेले ॥ ६ ॥ - छाछ त्यागिके पानी राखे पानी तजि संथारा । भूममांहि थिर आसन मांडे साधर्मी ढिंग प्यारा ॥ जब तुम जानो यह न जपै है तब जिनवानी पढ़िये । यो कहि मौन लियो संन्यासी पंच परमपद गहिये ॥ ७ ॥ चौ आराधन मनमें ध्यावे बारह भावन भावे. । दशलक्षण मन धर्म बिचारै रत्नत्रय मन ल्यावै ॥ .." । जैन सिद्धांत संग्रह । www. ►
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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