SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२] जैनसिद्धांतसंग्रह। यह उपसर्ग सहो घर थिरता, माराधन चितधारी। ' तो तुमरे जिय कौन दुःख है ! मृत्यु महोत्सव पारी ४.०|| • अभयघोष मुनि काकंदीपुर, महां वेदना पाई। . वैरी चंडने सब तन छेदो, दुख दीनो अधिकाई॥ . यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। . तो तुमरे जिय कौन दुःख है ! मृत्युमहोत्सव वारी ॥४ विद्युतचरने बहु दुख पायो, तौभी धीर न त्यागी। . शुममावनस प्राण तजे निज, धन्य आर बड़भागी॥. यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ! मृत्युमहोत्सव वारी ॥११॥ पुत्र चिलाती नामा मुनिको, बैरीने तन घातो। . मोटे मोटे कीट पड़े तन, तापर निन गुण रातो ॥ यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्युमहोत्सव बारी ॥४॥ दण्डक नामा मुनिकी देही, वाणन कर अरि भेदी। . वापर नेक डिगे नहिं वे मुनि, कर्ममहारिपु छेदी-॥. यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। . . वो तुमरे जिय कौन दुःख है ! मृत्युमहोत्सव वारी ॥४॥ अमिनंदन मुनि आदि पांचस, धानी पेलि जु मारे । . . तौ मी श्रीमुनि समताधारी, पूरव कर्म विचारे ।।.. यह उपसर्ग सहो घर थिरतो, आराधन चित धारी ।. तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्युमहोत्सव वारी ॥१५॥ बाणक मुनि गोघरके मांही, मूंद अग्नि परिजालो। .
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy