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________________ २०० जैन सिद्धान्त दीपिका लेण्या-पुद्गन द्रव्य के सहयोग से होने वाला जीव का संक्लिष्ट नथा अमं क्लिप्ट विचार लेण्या वर्ण | गन्ध | स्पर्श कृष्ण | काजल के समान | नीम से बनन्त काला | गुण कटु मृत सर्प की | गाय की नील | नीलम के समान | सोंठ से अनंत गंध से अनंत जीभ से नीला I गुण तीक्ष्ण गुण अनिष्ट अनंन गुण कापोत कबूतर के गले के | कच्चे आम के | गन्ध फर्कण समान रंग रस से अनंत गुण तिक्त पप तेजः | हिंगूल-सिंदूर पके माम के के समान रक्त रस से अनंत गुण मधुर सुरभि-कुमुम| नवनीत हल्दी के समान | मधु से अनंत | की गंध से | मक्खन से पीला | गुण मिष्ट | वनंतगुण अनंतगुण इष्ट गंध | सुकुमार शंख के समान मिसरी से सफेद अनंत गुण मिष्ट वेदना-जीवों को होनेवाला दुःख । वेवाभाव-उदय में बाने वाले कर्म-पुद्गलों का अभाव
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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