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________________ ૨૬૪ जैन सिद्धान्त दीपिका लेकर समग्र लोक को जानता है । मनःपर्याय ज्ञान मनुष्यक्षेत्र तक ही सीमित है । स्वामीकृत भेद - अवधि ज्ञान संयत, असंयत और संयतासंयत सभी के होता है । मनःपर्याय ज्ञान केवल संयत मनुष्य के ही होता है। विषयकृत भेद - अवधिज्ञान का विषय रूपी द्रव्य और उनके अपूर्ण पर्याय हैं । मनः पर्यायज्ञान का विषय है— उसका अनन्तवां भाग । ५. जीव की नौ योनियां...३/१८ जीव-सम्बन्ध - विसम्बन्ध, स्पर्श तथा प्राकार की अपेक्षा योनि के नौ भेद होते हैं । १. सचित्त' – सजीब, जैसे— जीवित गाय के शरीर में कृमि पैदा होते हैं, वह सचित्त योनि है । २. अचित — निर्जीव, जैसे- देव और नारकों को योनि - अचित्त होती है। ३. सचित' — अचित - सजीव - निर्जीव, जैसे - गर्भजमनुष्य और गर्भज-तियंत्रयों की योनि मिश्र होती १. तत्त्वार्थ राजवार्तिक, पृ० ६६ आत्मनश्चैतन्यस्य परिणामविशेषश्चित्तम् तेन सह वर्तन्ते इति सचिताः । २. प्रज्ञापनावृत्तिपद गर्भव्युत्क्रान्तिकतिर्यक्पञ्चेन्द्रियाणाम् गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याणाञ्च यत्रोत्पत्तिस्तत्र अचित्ता अपि शुक्रशोणितपुद्गलाः सन्तीति मिश्रा तेषां योनिः ।
SR No.010307
Book TitleJain Siddhant Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1970
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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