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________________ श्रीकृष्ण-कथा-पर्ग का प्रभाव ६६ दे दीजिए।' विद्याधर ने विद्या दी । वसुदेव बहाँ से चलकर कनखल गॉव के बाहर विद्या सिद्ध करने लगे और चडवेग अपने स्थान की ओर चला गया। बसुदेव विद्या-माधन मे मग्न थे । उसी समय विद्युद्वेग राजा की पुत्री मदनवेगा उघर से निकली। वसुदेव के सुन्दर रूप को देखकर मोहित हो गई। उसने तुरन्त कुमार को उठाया और वैताढ्य गिरि के पुप्प गयन उद्यान मे ले पहुँची । वसुदेव अपने जप मे लीन रहे, डिगे नहीं। मदतवेगा समीप ही अपने नगर अमृतधार नगर मे चली गई। प्रात काल मदनवेगा के तीनो भाइयो-दधिमुख, दडवेग और चडवेग ने आकर वसुदेव को नमस्कार किया। तीनो भाई आग्रहपूर्वक उन्हे अपने. नगर मे ले गये और मदनवेगा के साथ उनका विवाह विधिपूर्वक कर दिया। एक दिन दधिमुख ने कहा-कुमार | मेरे पिता को वधन से छुड़ाओ। -किसके बन्धन मे है तुम्हारे पिता? -दिवस्तिलक नगर के राजा त्रिगिखर के बन्धन मे । -कारण ? -हमारी बहन मदनवेगा ही इसका कारण है। आप प्री वात मुनिए। दधिमुख कहने लगा-- राजा त्रिनिखिर का एक पुत्र है सूर्पककमार। उसके लिए हमारे पिता से त्रिशिखर ने मदनवेगा की याचना की। हमारे पिता ने उनकी याचना ठुकरा दी। कारण था चारण ऋद्धि धारी मुनि के वचन'मदनवेगा का पति हरिवश मे उत्पन्न वसुदेव कुमार होगा। वह - १ यह चडवेग विद्याधर वही या जिसने वसुदेव को आकाश-गामिनी विद्या दो श्री।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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