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श्रीकृष्ण - कथा -- स्पर्श का प्रभाव
रतिधान्त सोमश्री और वसुदेव शैय्या पर सो गये ।
रात्रि के अन्तिम प्रहर मे वसुदेव की नीद खुली । देखा तो सोमश्री के स्थान पर कोई अन्य स्त्री सोई हुई है । जगाकर पूछने लगे- सुन्दरी ! तुम कौन हो ?
- आपकी पत्नी । —स्त्री ने उत्तर दिया ।
चौक पडे वसुदेव । एकदम मुख से निकला --
- मेरी पत्नी ? कव हुआ तुम्हारा विवाह मेरे साथ ? - आज ही तो दिन में रात को ही भूल गये । मुस्कराकर कहा
स्त्री ने ।
- वह तो • वह तो सोमश्री थी। तुम कहाँ से आ टपकी ? क्या रहस्य हैं यह ?
रहस्य जानना चाहते हैं आप, तो सुनिये । वह स्त्री कहने लगीदक्षिण श्रेणी मे सुवर्णाभ नगर का राजा है चित्राग । उसकी रानी अगारवती के उदर से मानसवेग नाम का पुत्र और वेगवती नाम की पुत्री मैं हुई । राजा चित्राग ने अपने पुत्र मानसेवग को राज्य भार देकर दीक्षा ग्रहण कर ली।
मानसवेग ने निर्लज्ज होकर तीन दिन पहले रात्रि के समय आपकी पत्नी सोमश्री का हरण कर लिया । उसने अनेक प्रकार से उसकी खुशामद की। मुझसे भी कहलवाया किन्तु सोमश्री ने पतिव्रत धर्म का पालन किया और उसकी याचना ठुकरा दी ।
तीन दिन तक उसकी दृढता देखकर मैंने उसे अपनी सखी मान लिया । उसी की प्रेरणा से मैं आपके पास आई। किन्तु आपको देखते ही काम पीडित हो गई ।
'कुलीन कन्याएँ विवाह से पहले किसी पुरुष के साथ काम सेवन नही करती ।' यह सोचकर मैंने सोमश्री का रूप रख कर आप से विवाह कर लिया । अव आप मेरे धर्मानुमोदित पति है ।
यही है मेरा रहस्य |
वसुदेव वेगवती की चतुराई पर चकित रह गये ।