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________________ श्रीकृष्ण कया-पूर्वजन्म का स्नेह खाली पड़े हैं। केवल राजा का अत पुर ही इन्द्रोत्सव मनाने के लिए यहाँ ठहरा हुआ है । आज वह भी चला जायगा। यह बाते करते-करते वसुदेव कुमार इन्द्रस्तम्भ के पास जा पहुँचे। वसुदेव ने इन्द्रस्तम्भ को नमन किया। राजा का अत पुर भी उसी समय स्तभ को नमन करके राजमहल की ओर चल दिया। राजकुमारी का रथ राजमार्ग पर महल की ओर मथर गति से चला जा रहा था। अचानक ही हाथी की मदभरी चिघाड सुनकर घोडे विदक कर उछ ने और सरपट दौडने लगे। रथ को झटका लगा तो राजकुमारी गेद के समान उछली और राजमार्ग पर लुढक गई। कर्णभेदी चिंघाड़े और अचानक गिर जाने से सोमश्री अचेत हो गई। राजा का हाथी मतवाला होकर अपने बाँधने की जजीर को कीला सहित उखाड कर चिघाडता हुआ भागा चला आ रहा था। भय के कारण राजमार्ग सुनसान हो गया। सभी लोग अपने-अपने घरो मे जा छिपे थे। प्राण किसे प्यारे नहीं होते ? वसुदेव ने देखा राजकुमारी अरक्षित पड़ी है। गजराज समीप आता जा रहा है। जीवन और मृत्यु मे कुछ कदम का ही फासला है। उनका क्षात्र तेज जाग उठा। तुरन्त अपने रथ से कूदे और हाथी की ओर दौड पड़े। ___ समीप पहुँच कर हाथी को ललकारा । मत्त गजराज ने सूंड उठा कर जोर की चिघाड मारी और चढ दौडा वसुदेव पर। अव उसका लक्ष्य राजकुमारी नही, वसुदेव था। कुमार वसुदेव अपने कौशल से हाथी को वश मे करने लगे। गजराज और वसुदेव मे इधर पैतरेवाजी चल रही थी और उधर राजपुत्री अचेत पडी थी। बड़े कौशल से वसुदेव ने हाथी को वश मे किया और राज-पुत्री को उठाकर समीप के एक घर मे ले गये। वहाँ अपने उत्तरीय से व्यजन करके उसे सचेत किया। राजकुमारी के सचेत होते ही वसुदेव वहाँ से चल दिये और अपने
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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