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________________ ५६ श्रीकृष्ण-कथा-अनेक विवाह राजा कपिल और उनके साले अशुमान ने वसुदेव को वही रोक 'लिया। वसुदेव भी कपिला के साथ सुखपूर्वक रहने लगे। परिणाम सामने आया-एक पुत्र । उस पुत्र का भी नाम रखा गया कपिल। ___एक बार वसुदेव हस्तिशाला मे जा निकन्ने । वहाँ एक नए हाथी को देखकर उनका मन उस पर सवारी करने को मचल गया। क्षत्रियो के दो ही प्रमुख शौक होते है-एक नये-नये अश्वो पर सवारी करना और दूसरा हाथियो पर । उछलकर वसुदेव हाथी पर जा चढे और हाथी उनके वैठते ही आकाश में उडने लगा । स्तम्भित रह गये वसुदेव । हाथी तो भूमि पर चलने वाला पशु है, आकाश मे कैसे उड़ने लगा ? वसुदेव जब तक सँभले तव तक हाथी उन्हे लेकर नगर से बहुत दूर निकल आया था। क्रोध मे आकर वसुदेव ने उसके ग डस्थल पर मुष्टिका प्रहार किया तो कुजर विह्वल होकर एक तालाब के किनारे जा गिरा। ___वसुदेव कूद कर दूर खडे हो गये । इसी समय हाथी ने रूप वदला और एक मनुष्य अपनी गरदन सहलाता हुआ मामने खडा था। कुमार ने उपटकर पूछा -~-कौन हो तुम ? क्या नाम है तुम्हारा ? --विद्याधर नीलकण्ठ ।१ जव तक कुमार दूसरा प्रश्न पूछते नीलकण्ठ आकाश में उड गया। ___ वसुदेव उसे देखते ही रह गये। अब क्या हो सकता था ? वहाँ मे घूमते-घामते वे सालगुह नगर आ पहुचे। सालगुह नगर का राजा था भाग्यसेन । भाग्यसेन को वसुदेव ने धनुर्वेद सिखाया । भाग्यसेन के बडे भाई मेघसेन ने आक्रमण किया तो वसुदेव ने उसे पराजित कर दिया। -१ यह विद्याधर नीलकठ नीलयशा के मामा नील का पुत्र था। यही नील यणा से विवाह करने आया था जिसे नीलयशा के पिता सिंहदष्ट्र ने पराजित कर दिया था।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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